प्रिय मित्रो,
हम सिंध वेलफेयर सोसाइटी से जुड़े कुछ सिंधी सामाजिक कार्यकर्त्ता और कानूनी विशेषज्ञ, नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी एक्ट 1992 के तहत सिन्धियों को अल्पसंख्यक की मान्यता दिलवाने के लिए प्रयासरत हैं।
भारत के संविधान के तहत सिन्धियों को भाषाई अल्पसंख्यक माना गया है। भारत का संविधान अल्पसंख्यकों को चाहे वह भाषाई हों, या धार्मिक उनकी भाषा, संस्कृति और लिपि को संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेष अधिकार देता है। इन्हीं अधिकारो को नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी एक्ट 1992 के अधीन कानूनी जामा पहनाया गया है। लेकिन शायद त्रुटिवश या वोटबैंक के राजनीति की वजह से केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों को ही इस एक्ट के तहत मान्यता दी गयी है। जबकि भारत का संविधान भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक के बीच कोई भेदभाव नहीं करता है।
इसी त्रुटि को सुधारने और प्रान्तविहीन सिंधी समुदाय को उसका सही हक़ दिलवाने के लिए यह मुहिम शुरू की गयी है। इस मुहीम के तहत भारत के प्रधानमंत्री को और अल्पसंख्यक मंत्रालय को एक पेटिशन रजिस्टर्ड डाक के द्वारा सिंधी समाज की पुरे भारत की रजिस्टर्ड सामाजिक संस्थाओं द्वारा भिजवाई जा रही है।
आप सभी से निवेदन है की आगे शेयर किये गए पेटिशन के ड्राफ्ट को अपनी अपनी संस्थाओं के लैटर पैड पर टाइप करवा कर केवल स्पीड पोस्ट के द्वारा रजिस्टर्ड AD प्रधानमंत्री कार्यालय और अल्पसंख्यक मंत्रालय को भिजवाएं।
जितनी ज्यादा संख्या में यह पेटिशन भेजी जायेगी उतना ज्यादा दबाव केंद्र सरकार पर हमारी जायज मांग मानने के लिए बनेगा। हमारी यह मांग पूर्णरूपेण न्यायोचित और संविधान सम्मत है। इस बात का विश्वाश स्वयं आपको पेटिशन पढ़ने के बाद हो जाएगा। अगर केंद्र सरकार हमारी यह मांग अस्वीकार कर देती है तो हम सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
सिंधी समाज के जो जागरूक कार्यकर्त्ता इस मुहीम का हिस्सा बनना चाहते हैं कृपया वह निम्नलिखित नंबर पर संपर्क कर ज्यादा जानकारी ले सकते हैं।
अतुल राजपाल
9335037618
विजय राजवानी
09891649200
सेवा में,
1.माननीय श्री प्रधानमंत्री महोदय,
भारत सरकार ,
7 रेस कोर्स रोड,त्रिमूर्ति मार्ग एरिया,
नयी दिल्ली, 110001.
2. माननीय केंद्रीय मंत्री,
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय, भारत सरकार,
11वां तल, पर्यावरण भवन, सीजीओ काम्प्लेक्स,
लोदी रोड,नयी दिल्ली,110003.
विषय : सिंधी समुदाय (विस्थापित ,प्रान्तविहीन व भाषायी अल्पसंख्यक) को नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी एक्ट 1992 की धारा 2(iii) के अंतर्गत अल्पसंख्यक अधिसूचित किये जाने हेतु।
माननीय महोदय,
हम आप का ध्यान भारत में पिछले अड़सठ वर्षों से उपेक्षित, भाषायी अल्पसंख्यक व प्रान्तविहीन रहे सिन्धी समुदाय की ओर आकर्षित कराना चाहते हैं जो 1947 के पीड़ादायक भारत विभाजन से होने वाले निर्वासन/विस्थापन में अपना सब कुछ खोने के बाद अपने ही देश में अलगाव की जिंदगी जी रहा हैं।
आदरणीय, सन 1950 में भारत सरकार की पुनर्वास योजना के अंतर्गत इस समुदाय को देश के अलग-अलग राज्यों के शहरों में आधे-अधूरे इंतजामों के साथ बसाया गया। अपनी बिखरी जिंदगी को संवारने की जद्दोजहद एवं समुदाय के रुप में बिखर जाने से वे अपनी आवाज़ और विधिक मांगो को सरकार तक संगठित और समेकित रुप में पहुंचा पाने में असमर्थ रहे हैं।
सन 1953 में भारत सरकार द्वारा राज्यों के पुनर्गठन हेतु नियुक्त राज्य पुनर्गठन आयोग से सिन्धी समुदाय को आजाद भारत में अपना एक छोटा-सा राज्य दिए जाने की उम्मीद थी परन्तु राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा सन 1956 रिपोर्ट में भाषाई सिद्धांत को मानकर भारत सरकार ने लगभग सभी भाषाई समुदायों को एक पृथक राज्य दिये जाने की अनुशंसा के आधार पर राज्यों के गठन से निर्वासित/विस्थापित सिंधी समुदाय को भाषायी आधार पर सिन्धी भाषी राज्य गठन के नैसर्गिक अधिकार से वंचित कर दिया गया। परिणामत: देश में संघीय ढांचे की मूल भावनाओं के आधार पर गठित भाषायी राज्यों के पुनर्गठन व्यवस्था में सामाजिक,आर्थिक एव राजनैतिक उत्थान की अभिकल्पना का कोई भी फायदा इस समुदाय तक नहीं पहुंच सका। सिंधी समुदाय के लोग इस देश के निवासी होने के बावजूद भी सामाजिक न्याय का लाभ नहीं प्राप्त कर पाए। साथ ही वे सत्ता में रही केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा उपेक्षित व्यवहार के शिकार होते रहे हैं। प्रसाशनिक, न्यायिक और राजनितिक पदों पर सिंधी समुदाय के लोगों का नगण्य प्रतिनिधित्व इसका सबसे सटीक उदाहरण है।
आदरणीय, वर्तमान में सिन्धी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा न केवल बहुत ही हताश,उपेक्षित एवं ना-उम्मीदी से भरा जीवन व्यतीत कर रहा है बल्कि यह समुदाय अडसठ सालों के बाद भी समुदाय से जुड़ी समस्याओं पर भारत सरकार की असंवेदनशीलता को ऊपर से नीचे सभी स्तरों पर गहरे से महसूस करता है। साफ दिखाई भी देता है कि आज अगर हम भारत के किसी भी अन्य अल्पसंख्यक समुदाय को देखें तो भारत सरकार के अथक व प्रशंसनीय प्रयासों एवं कृपा दृष्टि से वे सशक्त और सक्षम बने हैं/ हो रहे है, जो सिंधी समुदाय की तुलना में न तो उस स्तर पर निर्वासित/विस्थापित थे, न ही उन्हें हमारे समुदाय की भांति अपनी मातृभूमि को भारत निर्माण के लिए पूरी तरह त्यागना पड़ा और न ही उन्हें विभाजन के अपमान का इतना गहरा दंश झेलना पड़ा।
आदरणीय, चुनावी संख्या बल में अल्पमत (लोकतंत्र में चुनाव जीतने एवं जितवाने के साथ इसमें भागीदारी की अनिवार्य शर्त) में होने से हम न तो राजनीतिक प्रक्रियाओं में अन्य समुदायों की भांति प्रभावी रूप से भाग ले पाते हैं और न ही अपने समुदाय से प्रतिनिधियों को सांसद और विधायक के रुप में जिता कर देश एवं राज्य की विधायिकाओं में अपनी बात रख पाते हैं।
आदरणीय, इस महत्वपूर्ण बात को संज्ञान में लें कि हमनें अपनी आदर्श सामाजिक, शांतिप्रिय, और धर्मनिरपेक्षता की बेहतरीन छवि एवं सिंधु सभ्यता की मर्यादाओं को लाँघ कर देश की सड़कों पे अपनी मांगों को मनवाने का कोई भी हिंसक या गलत प्रयास कभी नहीं किया। हमेशा अपनी रचनात्मक एवं सकारात्मक सोच से भारत की प्रगति एवं निर्माण में योगदान करते रहे हैं। पर हमें दुःख है कि संविधान निर्माताओं की मूल भावनाओं के विपरीत सामाजिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक स्तर पर सिंधी समुदाय की भागीदारी को सुनिश्चित करने का प्रयास सरकार द्वारा कभी नहीं हुआ है जो कि सरकार की नीति एवं योजनाओं से स्पष्ट परिलक्षित होता है।
उपरोक्त दिए गये बिंदुओं के सन्दर्भ में विशेष ध्यान दिये जाने की अपेक्षा करते हुए भारत का सबसे मुख्तलिफ़ विस्थापित, प्रान्तविहीन,अल्पसंख्यक सिन्धी समुदाय ( इस बात को ध्यान में रखते हुए कि अभी तक किसी भी भाषाई अल्पसंख्यक के लिए भारत सरकार ने नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी एक्ट 1992 की धारा 2(iii) के अंतर्गत कोई अधिसूचना जारी नहीं की है ) भारत सरकार से यह मांग करता है कि सिन्धी समुदाय को नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी एक्ट 1992 की धारा 2 (iii) के अंतर्गत अल्पसंख्यक सूची में अधिसूचित किया जाये जो कि निम्नलिखित बिंदुओं पर तर्कसंगत एवं न्यायसंगत है:-
1. भारतीय संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की व्याख्या नहीं की गई है। भारतीय संविधान के अनुछेद 29 व 30 में केवल धर्म या भाषा (दोनों के लिए) पर आधारित अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण का उल्लेख किया गया है। माननीय आयोग द्वारा अपनाये गये मानकों के आधार घोषित अल्पसंख्यकों की भांति सिंधी समुदाय भी उन मानकों को पूरा करता है।
2. संविधान का भाग IV-नीति निर्देशक सिद्धांत, जिनका संबंध लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक अधिकारों से है और ऐसे सामाजिक और आर्थिक अधिकारों से पूरा सिंधी समुदाय अभी तक वंचित रहा है।
अ) राज्य का उत्तरदायित्व है कि वह विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले या विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए व्यक्तियों या लोगों के समुदायों में स्थिति, सुविधाओं तथा अवसरों की असमानता को समाप्त करने का प्रयास करे (अनुच्छेद 38 (2)
ब) राज्य का उत्तरदायित्व है कि जनसाधारण के कमजोर वर्गों (अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के अतिरिक्त) के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों पर विशेष ध्यान देते हुए इनका उत्थान करें।
3.अनुच्छेद 51 अ अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रासंगिक है जो प्रोत्साहित करता हैः –
अ. धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या वर्गीय भिन्नताओं से परे भारत के सभी लोगों में मेल मिलाप तथा आम भाईचारे को बढ़ाना हर नागरिक का कर्त्तव्य है।
ब. हमारी मिली जुली संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्त्व देना हर नागरिक का कर्तव्य है।
4.संयुक्त संघ घोषणा – 18 दिसंबर, 1992 को संयुक्त राष्ट्र घोषण में अल्पसंख्यकों को सुदृढ़ बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने दिसंबर 18, 1992 में अल्पसंख्यकों के जातीय, धार्मिक तथा भाषायी अधिकारों के संबंध की घोषणा में कहा कि “हर देश संबंधित अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय, जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक अधिकारों एवं अस्तित्व की रक्षा करेगा तथा उनकी पहचान को बनाए रखने के लिए उनकी स्थिति को प्रोत्साहित करेगा’ ।
5. नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी एक्ट 1992 की धारा 2 (iii) के तहत केद्र सरकार को अल्पसंख्यक अधिसूचित करने के अधिकार दिए गए हैं। भारत सरकार ने अब तक मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी, एव जैन समुदाय को नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी एक्ट 1992 की धारा 2 (iii) के तहत अल्पसंख्यक अधिसूचित किया है। भारत के सिंधी समुदाय को भी इस एक्ट के तहत अल्पसंख्यक अधिसूचित करना संविधान की मूल भावना के तहत न्यायोचित है।
6. सिन्धी समुदाय जिसे अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति को ‘सुरक्षित’ रखने का अधिकार अनुच्छेद 29 (1) के तहत मिला हुआ है, जिस कारण यह समुदाय भी अल्पसंख्यक के परिधि में आता है।
7. निर्वासित /विस्थापित और प्रान्तविहीन सिंधी समुदाय एक भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय है जिसने 1947 में विभाजन की पीड़ा सबसे ज्यादा सही है। ऐसे में इस समुदाय को नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी एक्ट 1992 की धारा 2 (iii) के तहत केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक अधिसूचित करना नितांत आवश्यक हो जाता है ताकि सरकार द्वारा देश में अल्पसंख्यकों के लिए चलायी गयी योजनाओं में सिंधी समुदाय की भी भागीदारी सुनिश्चित हो सके तथा यह समुदाय भी अपनी पृथक लिपि, भाषा ,संस्कृति के साथ अपने अस्तित्व को भी विलुप्त होने से बचाकर रख सकें।
8. संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर ने जहां ब्रिटिश राज्य में अल्पसंख्यकों के लिए प्रयुक्त की गयी परिभाषा में एक नया आयाम जोड़ा और वहीं किसी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किये जाने को राज्य सीमाओं और धार्मिक आधारों से भी ऊपर रक्खा और विस्तृत गैर तकनीकी अर्थों में इसे प्रयुक्त कर बताया की इसमें सांस्कृतिक के साथ भाषायी अल्पसंख्यक भी अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हैं। चाहे समुदाय किसी राज्य में चले जाएं, संवैधानिक अर्थों में भाषायी अल्पसंख्यक भी सांस्कृतिक अल्पसंख्यक के समान ही अल्पसंख्यक माने जाएंगे। इसलिये अनुच्छेद 29, 30 न केवल तकनीकी अल्पसंख्यको को ही बल्कि भाषायी, सांस्कृतिक समूहों को भी सुरक्षा देगा।
इस प्रकार यदि हम संविधान निर्माता की भावना को भी देखें तो सिन्धी समुदाय भी नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटी एक्ट 1992 तहत अल्पसंख्यक अधिसूचित होने की पात्रता पूर्ण करता है।
पूर्ण सहयोग की आशा में ,
सधन्यवाद
भवदीय
शहर :-
दिनाक:-
26.811606
80.902570